Matangi Mata : नौवीं महाविद्या मातंगी माता, मंत्र, ध्यान, स्तोत्र, कवच,Nauveen Mahaavidya Maatangee Mata, Mantr, Dhyaan, Stotr, Kavach

 Matangi Mata : नौवीं महाविद्या मातंगी माता, मंत्र, ध्यान, स्तोत्र, कवच

मातंगी, दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या है. मातंगी को ज्ञान, कला, और अलौकिक कौशल का सार माना जाता है. उन्हें संगीत और ज्ञान की देवी माना जाता है और देवी सरस्वती का तांत्रिक समकक्ष भी माना जाता है. मातंगी की पूजा से कला में महारत हासिल होती है, विरोधियों को नियंत्रित करने की शक्ति मिलती है, और लोगों में चुंबकीय आकर्षण पैदा होता है. मातंगी की उपासना खास तौर पर तंत्र-मंत्र योग के लिए की जाती है. मातंगी को चंडालिनी के नाम से भी जाना जाता है. उनका शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के झाबुआ में है
एक वार मतंग नामक योगी ने सष्टि के प्रत्येक जीव को अपने वशीभूत करने की अभिलाषा से प्रेरित होकर कदम्ब वन प्रान्त में एक विशेष तप किया. जिसके प्रभाव से आकर्षण हुआ। इसी श्रृंखला के अन्तर्गत देवी के नेत्रों से दिव्य तेज पंज निकला जो कि एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया। इनका श्याम वर्ण था। इन्हें मातंगी कहते हैं। मान्यता है कि इनकी सेवा उपासना करने से निश्चित ही वाणी सिद्ध होती है।


पश्चिमाम्नाय की देवी है। राजमातंगी, सुमुखी, वश्यमातंगी, कर्णमातंगी मातंगी का एक नाम उच्छिष्ट चाण्डालिनी है। यह दक्षिण तथा इसके नामान्तर हैं। इनका रूप श्यामल है तथा इनकी ख्याति राजमातंगिनी के नाम से हई है। ब्रह्मयामल इन्हें मतंग मुनि की कन्या बताता है। पाणतीषिणी में यह विवरण इस प्रकार दिया है-

अथ मातंगिनीं वक्ष्ये क्रूरभूतभयंकरीम् । 
पुरा कदम्बविपिने नानावृक्षसमाकुले ॥ 
वश्यार्थ सर्वभूतानां मतंगो नामतो मुनिः । 
शतवर्षसहस्राणि तपोऽतप्यत सन्ततम् ॥ 
तत्र तेजः समुत्पन्न सुन्दरीनेत्रतः शुभे।
तजोराशिरभूत्तत्र स्वयं श्रीकालिकाम्बिका ॥ 
श्यामलं रूपमास्थाय राजमातंगिनी भवेत् ॥

इसका तात्पर्य है कि कालिका, त्रिपुरा तथा मातंगी में कोई भेद नहीं। इस रूप की उपासना का लक्ष्य वासिद्धि है। अतः वाणीदातृ के रूप में ही मातंगी की उपासना अभीष्ट है।
  • मातंगी मन्त्र
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंगयै फट् स्वाहा।

मातंगी माता ध्यान

श्यामांगीं शशिशेखरां त्रिनयनां रत्नसिंहासनस्थिताम् 
वेदैः बाहुदण्डैरसिखेटकपाशांकुशधराम् ॥

मातंगी देवी श्याम वर्ण, अर्द्ध चन्द्रधारिणी और त्रिनयन हैं, यह चार हाथ में खंग, खेटक पाश औरअंकुश यह चारों अस्त्र धारण करके रत्न निर्मित सिंहासन पर विराजमान हैं।

मातंगी माता स्तोत्र

ईश्वर उवाच

आराध्य मातश्चरणाम्बुजे ते ब्रह्मादयो विश्रुतकीर्त्तिमापुः । 
अन्ये परं वा विभवंमुनीन्द्राः परां श्रियं भक्तिभरेण चान्ये ॥

हे मातः ! ब्रह्मादि देवताओं ने तुम्हारे चरण कमलों की आराधना करके कीर्ति लाभ प्राप्त किया है। दूसरे मुनीन्द्र भी परम विभव को प्राप्त हुए हैं। और अपर अनेकों ने भक्ति भाव से तुम्हारे चरण कमलों की
आराधना करके अत्यन्त लाभ किया है।

नमामि देवीं नवचन्द्रमौलिं मातंगिनीं चन्द्रकलावतंसाम् । 
आम्नायकृत्यप्रतिपादितार्थं प्रबोधयन्तीं हृदिसादरेण ॥

जिनके माथे पर चन्द्रमा शोभा पाता है। जो वेद प्रतिपादित अर्थ को सर्वदा आदर से हृदय में प्रबोधित करती हैं। उन्हीं मातंगिनी देवी को नमस्कार है।

विनम्रदेवासुरमौलिरत्नैर्विराजितं ते चरणारविन्दम् ।
अकृत्रिमाणां वचसां विगुल्कं पादात्पदं सिञ्जितनूपुराभ्याम् ।

कृतार्थयन्तीं पदवीं पदाभ्यामास्फालयन्तीं कुचवल्लकीं ताम् । 
मातंगिनीं मद्धृदयेधिनोमि लीलंकृतां शुद्ध नितम्बबिम्बाम् ॥

हे देवी ! तुम्हारे चरण कमल सिर झुकाये देवासुरों के शिरों के रत्न द्वारा विराजित हैं। तुम अकृतिम वाक्य के अनुकूल हो। तुम्हीं शब्दायमान नपुरयुक्त अपने दोनों चरणों से इस पृथ्वी मण्डल को कृतार्थ करती हो। तुम्हीं सदा वीणा बजाती हो। तुम्हारे नितम्ब अत्यन्त शुद्ध हैं। मैं तुम्हारा हृदय में ध्यान करता हूँ।

तालीदलेनार्पितकर्णभूषां माध्वीमदाघूर्णितनेत्रपद्माम् ।
घनस्तनीं शम्भुवधं नमामि तडिल्लताकान्तवलक्षभूषाम् ॥

तुमने ताल का करों में विभूषण धारण किया है, माध्वीक मद्यपान से तुम्हारे नेत्र कमल विघूर्णित होते हैं। तुम्हारे स्तन अत्यन्त घने हैं। तुम महादेव जी की वधू हो। तुम्हारी कान्ति विद्युत के समान मनोहर है। तुमको नमस्कार है।

चिरेण लक्षं प्रददातु राज्यं स्मरामि भक्त्त्या जगतामधीशे ।
वलित्रयांगं तव मध्यमम्ब नीलोत्पलं सुश्रियमावहन्तीम् ॥

हे मातः ! मैं भक्ति सहित तुम्हारा स्मरण करता हूँ। तुम बहुत काल का नष्ट हुआ राज्य प्रदान करती हो। तुम्हारी देह का मध्य भाग तीन वल्लियों से सज्जित है। तुमने नीलोत्पल के समान श्री धारण कर रखी है।

कान्त्या कटाक्षैर्जगतां त्रयाणां विमोहयतीं सकलान् सुरेशि। 
कदम्बमालाञ्चितकेशपाशं मातंगकन्यां हृदि भावयामि ॥

हे सुरेश्वरी ! तुम कान्ति और कटाक्ष द्वारा तीनों लोकों को मोहित करती हो। तुम्हारे केश कदम्ब माला से बंधे हुए हैं। तुम्हीं मातंग कन्या हो। मैं तुम्हारी हृदय में भावना करता हूँ।

ध्यायेयमारक्तकपोलबिम्बं बिम्बाधरन्यस्तललाम वश्यम्।
अलोललीलाकमलायताक्षं मन्दस्मितं ते वदनं महेशि ॥ 

हे देवी ! तुम्हारे जिस मोहक मुख पर गालों के नीचे रक्त वर्ण के होंठ परम सुन्दरता में मुर्मान्जत हैं, जिसमें चंचल अलकावली विराजमान है। आपके नेत्र बड़े हैं और आपके मुख पर मंद मंद हास्य शोभा पाता है। उसी मुख कमल का मैं ध्यान करता हूँ।

स्तुत्याऽनया शंकरधर्मपत्नी मातंगिनीं वागधिदेवतां ताम। 
स्तुवन्ति ये भक्तियुता मनुष्याः परां श्रियं नित्यमुपाश्रयन्ति ॥

जो पुरुष भक्तिमान् होकर शंकर की धर्म पत्नी वाणी की अधिष्ठात्री नातंगिनी की इस स्तव द्वारा स्तुति करता है, वह सर्वदा परम श्री को प्राप्त करता है।

मातंगी माता कवच

शिरोमातंगिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोतला कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं मम ॥

मातंगी मेरे मस्तक की, भुवनेशी मेरे चक्षु की, तोतला मेरे कर्ण और त्रिपुरः मेरे मुख की रक्षा करें।

पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा।
त्रिपुरा पार्श्वयोः पांतु गुह्ये कामेश्वरी मम ॥

महामाया मेरे कण्ठ की, माहेश्वरी मेरे हृदय की, त्रिपुरा मेरे पार्श्व की और कामेश्वरी मेरे गुह्य की रक्षा करें।

ऊरुद्वये तथा चण्डी जंघायाञ्च रतिप्रिया ।
महामाया पदे पायात्सर्वांगेषु कुलेश्वरी ॥

चण्डी दोनों ऊरू की, रतिप्रिया मेरी जंघा की, महामाया मेरे पाँवों की और कुलेश्वरी सर्वांग की रक्षा करें।

य इदं धारयेन्नित्यं जायते सर्वदानवित् ।
परमैश्वर्य्यमतुलं प्राप्नोति नात्र संशयः ॥

जो पुरुष इस कवच को धारण करते हैं, वह सर्वदानज्ञ होते हैं और अतुल ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं। इसमें सन्देह नहीं करना।

मातंगी माता के बारे में कुछ और बातें:

  • मातंगी को वाणी और संगीत की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है.
  • शास्त्रों के मुताबिक, मातंगी स्तंभन की देवी हैं और ऐसा माना जाता है कि इनके अंदर पूरे ब्रह्मांड की शक्तियां हैं.
  • मातंगी की पहचान उनके गहरे या हरे रंग से होती है.
  • उनके माथे पर चंद्रमा होता है और वह रत्नों से सुसज्जित मुकुट पहनती हैं.
  • मातंगी तीन आंखों वाली हैं और दुर्गा के उग्र रूप का प्रतीक हैं.
  • मातंगी अपने चार हाथों में पाश, गदा, अंकुश, और कुल्हाड़ी रखती हैं.
  • कभी-कभी, उन्हें खून का कटोरा और खोपड़ी पकड़े हुए एक निर्जीव शरीर पर बैठे हुए चित्रित किया जाता है.
  • मातंगी इंद्रजाल और जादू के प्रभाव को नष्ट करती हैं.

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